इस रिपोर्ट ने मेरे परिवार के ही नहीं पूरे सूबे के कान खड़े कर दिए। मेरे बाद मेरी इंजीनियर बेटी में भी कोरोना की पुष्टि हो गई। हालांकि, बेटे की रिपोर्ट नेगेटिव आई। इसके बावजूद उसे भी हॉस्पिटल के एक कमरे में 17 दिन तक बंद करके रखा गया। 10 मार्च को यह जानकारी देशभर में फैल गई। अगले तीन-चार दिन किसी बुरे सपने से कम न थे। पहले दो दिन तो कुछ रिश्तेदारों ने बाहर से खाना लाकर दिया, फिर राज्य सरकार की पहल के बाद हॉस्पिटल में ही खाना मिलने लगा। खाने में किसी तरह का कोई खास परहेज तो नहीं था, पर डॉक्टरों ने ज्यादा तला-भुना खाने से मना किया था।
शुरू में तो लगा कि हमारी वजह से पूरे महाराष्ट्र में कोरोना फैल गया
कोरोना की पुष्टि हो जाने के बाद हमें बार-बार यह बात कचोटने लगी कि हमारी वजह से 40 अन्य लोगों को भी संक्रमण हो गया होगा। हालांकि, दो दिन बाद ही यह साफ हो गया कि ग्रुप के ज्यादातर लोग नेगेटिव हैं। शुरू में तो हमें ऐसा लग रहा था कि हम पूरे महाराष्ट्र में कोरोना फैलाने के जिम्मेदार हैं। कुछ करीबी दोस्तों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोगों के रुख में बदलाव भी देखने को मिला।